गाजे बाजे के साथ गणपति बप्पा हमारे द्वार पर दस्तक देने आ रहे हैं। अधिकतर घरों में गणेशजी की प्रतिमा स्थापित कर 10 दिन तक उत्सव की पूरी तैयारी है, लेकिन गणेश प्रतिमा को लेकर कुछ बिंदु ऎसे हैं, जिन्हें लेकर असमंजस की स्थिति रहती है। जैसे भगवान की सूंड किस तरफ होना चाहिए, प्रतिमा खड़ी हुई होना चाहिए या बैठे हुए विग्रह की स्थापना की जाना चाहिए।
मूषक या रिद्धि-सिद्धि साथ हो या ना हो। इसे लेकर हमने विद्वानों से बात कि, उनका मानना है कि दोनों ही तरफ की सूंड वाले गणेश जी शुभ होते हैं? दाई और की सूंड वाले सिद्धि विनायक कहलाते हैं तो बाई सूंड वाले वक्रतुंड हालांकि शास्त्रों में दोनों का पूजा विधान अलग-अलग बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि दाएं हाथ की ओर मुड़ी हुई सूंड वाली गणेश जी प्रतिमा की पूजा से मनोकामना सिद्घ होने में देर लगती है क्योंकि इस तरह की सूंड वाले गणेश जी देर से प्रसन्न होते हैं। यदि सूंड दायीं तरफ है तो आपको सतर्क हो जाना चाहिए क्योंकि दायीं तरफ सूंड वाले गणेश जी को तंत्र कार्यों के प्रयोग में लिया जाता है।
बाएं सूंड वाले प्रतिमा से गणेश जी जल्दी प्रसन्न होते हैं। गणपति जी की बाईं सूंड में चंद्रमा का और दाईं में सूर्य का प्रभाव माना गया है। बाएं सूंड वाली मूर्ति की पूजा स्थायी कार्यों के लिए की जाती है। जैसे शिक्षा, धन प्राप्ति, व्यवसाय, उन्नति, संतान सुख, विवाह, सृजन कार्य और पारिवारिक खुशहाली।सीधी सूंड वाली मूर्त का सुषुम्रा स्वर माना जाता है और इनकी आराधना रिद्धि-सिद्धि, कुण्डलिनी जागरण, मोक्ष, समाधि आदि के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। बाई ओर घूमी हुई सूंड वाले गणेशजी विघ्नविनाशक कहलाते हैं। इन्हें घर में मुख्य द्वार पर लगाने के पीछे तर्क है कि जब हम कहीं बाहर जाते हैं तो कई प्रकार की बलाएं, विपदाएं या नेगेटिव एनर्जी हमारे साथ आ जाती है। घर में प्रवेश करने से पहले जब हम विघ्वविनाशक गणेशजी के दर्शन करते हैं तो इसके प्रभाव से यह सभी नेगेटिव एनर्जी वहीं रूक जाती है व हमारे साथ घर में प्रवेश नहीं कर पाती
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